नमस्ते दोस्तों! आज की भागदौड़ वाली जिंदगी में कार चलाना सिर्फ एक जरूरत नहीं, बल्कि एक रोमांच भी है। लेकिन सड़क पर हादसे कब हो जाएं, ये कोई नहीं जानता। यही वजह है कि अब कारें सिर्फ इंजन और व्हील्स से नहीं चलतीं, बल्कि उनमें स्मार्ट टेक्नोलॉजी आ गई है जो हमें सुरक्षित रखती है। जी हां, मैं बात कर रहा हूं एडवांस्ड ड्राइवर असिस्टेंस सिस्टम या ADAS की। ये वो सिस्टम हैं जो कार चलाते या पार्किंग करते समय ड्राइवर की मदद करते हैं, ताकि हादसे कम हों और सफर मजेदार बने। चलिए, आज इस पर थोड़ी गपशप करते हैं – जैसे दोस्तों के साथ चाय की टेबल पर बैठकर।
ADAS क्या है और क्यों जरूरी?
कल्पना कीजिए, आप हाईवे पर तेज रफ्तार से जा रहे हैं और अचानक आगे वाली कार रुक जाती है। अगर आपका ध्यान भटक गया तो? ADAS यहां काम आता है – ये सेंसर, कैमरा और रडार की मदद से आसपास की चीजों को डिटेक्ट करता है और ड्राइवर को अलर्ट देता है, या खुद ही ब्रेक लगा सकता है। मुख्य उद्देश्य है इंसानी गलतियों को कम करना, क्योंकि ज्यादातर हादसे इसी वजह से होते हैं।

दुनिया भर में ADAS वाली कारें तेजी से बढ़ रही हैं। हाल के आंकड़ों के मुताबिक, नई कारों में से करीब एक-तिहाई में ये फीचर्स आते हैं, और आने वाले सालों में ये और आम हो जाएंगी। ये न सिर्फ जान बचाती हैं, बल्कि ट्रैफिक को भी स्मूथ बनाती हैं।
ADAS का इतिहास: पुराने दिनों से आज तक
ADAS की जड़ें काफी पुरानी हैं। 1970 के दशक में एंटी-लॉक ब्रेकिंग सिस्टम (ABS) जैसी चीजें आईं, जो ब्रेक लगाते समय पहियों को लॉक होने से रोकती हैं। इससे पहले, 1950 के दशक में रडार-बेस्ड सिस्टम पर экспериमेंट हुए थे। आज ADAS ज्यादा एडवांस हो गया है – LiDAR, कैमरा और व्हीकल-टू-व्हीकल कम्युनिकेशन की बदौलत। ये रीयल-टाइम में काम करता है, कई इनपुट्स को प्रोसेस करके हादसे रोकता है।
ADAS के लेवल: कितनी मदद मिलती है?
ADAS को SAE (सोसायटी ऑफ ऑटोमोटिव इंजीनियर्स) ने 6 लेवल में बांटा है, जो बताते हैं कि कार कितनी ऑटोनॉमस है:
लेवल | विवरण | उदाहरण |
---|---|---|
लेवल 0 | कोई ऑटोमेशन नहीं, सिर्फ जानकारी देता है। ड्राइवर को सब कुछ संभालना पड़ता है। | पार्किंग सेंसर, ब्लाइंड स्पॉट वार्निंग, लेन डिपार्चर वार्निंग। |
लेवल 1 | एक फंक्शन पर कंट्रोल, जैसे स्पीड या स्टीयरिंग। | एडाप्टिव क्रूज कंट्रोल, लेन कीपिंग। |
लेवल 2 | कई फंक्शन एक साथ, लेकिन ड्राइवर को ध्यान रखना पड़ता है। | हाईवे असिस्ट, ऑटोनॉमस पार्किंग। |
लेवल 3 | ज्यादातर ड्राइविंग खुद करता है, लेकिन ड्राइवर तैयार रहे। | कुछ कारों में लिमिटेड फीचर्स। |
लेवल 4 | स्पेसिफिक कंडीशंस में पूरी तरह ऑटोनॉमस, ड्राइवर की जरूरत नहीं। | जियोफेंस्ड एरिया में। |
लेवल 5 | हर कंडीशन में फुल ऑटोनॉमी, स्टीयरिंग व्हील ऑप्शनल। | भविष्य की कारें। |
अभी ज्यादातर कारें लेवल 2 तक हैं, जहां ड्राइवर को ‘हैंड्स ऑफ’ तो रखने देते हैं, लेकिन आंखें रोड पर रखनी पड़ती हैं।

मुख्य फीचर्स: अलर्ट से लेकर कंट्रोल तक
ADAS में कई कमाल के फीचर्स हैं, जो चार कैटेगरी में बंटे हैं:
- अलर्ट और वार्निंग:
- ब्लाइंड स्पॉट मॉनिटर: ब्लाइंड स्पॉट में आने वाली चीजों का पता लगाता है।
- ड्राइवर ड्राउजिनेस डिटेक्शन: थकान महसूस होने पर अलर्ट देता है।
- फॉरवर्ड कोलिजन वार्निंग: आगे टक्कर की आशंका पर चेतावनी।
- लेन डिपार्चर वार्निंग: लेन से बाहर जाने पर अलर्ट।
- क्रैश मिटिगेशन:
- पेडेस्ट्रियन प्रोटेक्शन: पैदल चलने वालों से टक्कर होने पर इंजरी कम करने के लिए बोनट उठाता है।
- ABS: ब्रेक लगाते समय व्हील लॉक नहीं होने देता, कंट्रोल बनाए रखता है।
- ड्राइविंग टास्क असिस्टेंस:
- एडाप्टिव क्रूज कंट्रोल: स्पीड और दूरी खुद मैनेज करता है।
- ऑटोमैटिक पार्किंग: पार्किंग खुद संभालता है।
- इलेक्ट्रॉनिक स्टेबिलिटी कंट्रोल: स्लिप होने पर ब्रेक लगाता है।
- विजुअल मॉनिटरिंग:
- हेड-अप डिस्प्ले: विंडशील्ड पर इन्फो दिखाता है।
- नाइट विजन: अंधेरे में ऑब्जेक्ट डिटेक्ट करता है।
- ट्रैफिक साइन रिकग्निशन: साइन्स पढ़कर बताता है।
ये फीचर्स न सिर्फ सुरक्षित बनाते हैं, बल्कि ड्राइविंग को आसान भी। जैसे, ABS की वजह से ब्रेकिंग डिस्टेंस कम होता है, खासकर ड्राई रोड पर।
ABS पर गहराई से: एक बेसिक लेकिन पावरफुल फीचर
ABS ADAS का बेस है। ये ब्रेक लगाते समय व्हील्स को लॉक होने से रोकता है, ताकि आप स्टीयरिंग कंट्रोल रख सकें। इसका काम ECU, व्हील स्पीड सेंसर, वाल्व्स और पंप से होता है – हर सेकंड 15 बार प्रेशर एडजस्ट करता है। इतिहास में ये 1970 से कारों में आया, और अब हर नई कार में स्टैंडर्ड है।
फायदे: क्रैश रिस्क 29% तक कम, मोटरसाइकिल पर 37% कम फेटल एक्सिडेंट। लेकिन स्नो या ग्रेवल पर ब्रेकिंग डिस्टेंस बढ़ सकती है। कई देशों में ये अनिवार्य है, जैसे इंडिया में 2019 से।
चुनौतियां और भविष्य

ADAS परफेक्ट नहीं है। स्टैंडर्डाइजेशन की कमी से कन्फ्यूजन होता है – अलग ब्रांड्स में नाम और बिहेवियर अलग। इंश्योरेंस में भी नई चुनौतियां, जैसे साइबर लायबिलिटी। एथिकल इश्यूज हैं, जैसे ‘ट्रॉली प्रॉब्लम’ – क्रैश में किसकी जान बचाएं?
फ्यूचर में ADAS इंटेलिजेंट ट्रांसपोर्ट सिस्टम (ITS) के साथ मिलकर स्मार्ट सिटी बनाएगा। रेगुलेशंस आ रहे हैं, जैसे DCAS, जो हैंड्स-फ्री ड्राइविंग अलाउ करेगा लेकिन ड्राइवर को अलर्ट रखेगा। मार्केट 2027 तक 65 बिलियन डॉलर से ऊपर पहुंचेगा।
सोचिए और शेयर कीजिए
दोस्तों, ADAS हमारी सड़कों को सुरक्षित बना रहा है, लेकिन याद रखें – टेक्नोलॉजी मददगार है, ड्राइवर की जिम्मेदारी कम नहीं होती। अगली बार कार चलाते समय इन फीचर्स का इस्तेमाल करके देखिए, और बताइए क्या फर्क पड़ा। आपका क्या ख्याल है – क्या फुल ऑटोनॉमस कारें जल्द आएंगी? कमेंट में शेयर करें, या किसी दोस्त को ये आर्टिकल फॉरवर्ड कीजिए। सुरक्षित सफर की कामना!
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